Akbar Birbal Ki Kahani【अकबर बीरबल की कहानी】15+कहानी संग्रह

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Akbar Birbal Ki Kahani | अकबर बीरबल की कहानी | Akbar Birbal Stories | Akbar Birbal Story in Hindi | अकबर बीरबल की कहानी छोटी सी | अकबर बीरबल की कहानियां | अकबर बीरबल की छोटी कहानी | अकबर बीरबल की स्टोरी

अकबर और बीरबल की कहानियाँ ऐसी कहानियाँ है जिसे हम अपनी दादी-नानी और दोस्तों से सुना करते थे, ये कहानियाँ मनोरंजन करने के साथ शिक्षा भी देती थी, जिससे किसी कहानी का महत्व हमें पता चलता है।

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम लेकर आए है, अकबर और बीरबल से जुड़ी कुछ रोचक कहानियाँ लेकर मुझे उम्मीद है ये आपको पसंद आएंगी।

Akbar Birbal Ki Kahani –

Akbar Birbal Stories
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बादशाही महाभारत –

एक दिन बादशाह अकबर के मन में ये विचार आया कि आने वाली पीढ़ी को अपने बारे में जानकारी देने के लिए महाभारत की तर्ज पर शाही महाभारत लिखवाई जाए, काफी सोच विचार करने के बाद इसके लिए उन्हें बीरबल ही उपयुक्त लगा, अतः उन्होंने अपनी इच्छा बीरबल के सामने रखी।

बीरबल ने कहा “हुजूर, आपकी इच्छा अनुसार शाही महाभारत जल्दी ही तैयार हो जाएगी, किंतु इसमें कुछ खर्चा हो जाएगा, ” बीरबल ने कहा, इसके बाद बादशाह अकबर ने बीरबल को शाही खजाने से पाँच हजार मुद्राएं और छः माह तक का समय, शाही महाभारत लिखने के लिए दे दिया।

बीरबल घर आ गया और मुद्राएं जनसेवा के कार्यों में खर्च कर दीं, छः माह तक वह आराम करता रहा। समय पूरा होने पर वह कुछ सादे कागजों का बंडल बनाकर बादशाह अकबर के सामने हाजिर हुआ।

बीरबल ने कहा – “जहांपनाह, शाही महाभारत तैयार है, किंतु कुछ कमी रह गई है, इसके लिए बेगम साहिबा से सलाह लेनी पड़ेगी क्यों कि रानी से संबंधित कुछ चीजें अभी लिखी जानी बाकी है।”

अकबर ने कहा- “बीरबल, तुम बेगम साहिबा से मिलकर उनसे जो पूछना चाहो पूछ सकते हो…. हमारी इजाजत है। “बादशाह अकबर ने कहा। बादशाह से इजाजत मिलने पर वह बेगम के कक्ष की ओर प्रस्थान कर गया।

वहाँ पहुँचकर उसने बेगम साहिबा को बादशाह अकबर की शाही महाभारत के बारे में बताया और कहा- “बेगम साहिबा, आप तो जानती हैं कि महाभारत में द्रौपदी के पांच पति थे।

अतः अब हुजूर के आदेश पर यह शाही महाभारत लिखी है, किंतु जब तक आप यह न बता दें कि बादशाह के अलावा आपके शेष चार पति कौन हैं? तब तक यह पूरी नहीं हो पाएगी।

यह सुनते ही बेगम साहिबा आपे से बाहर हो गईं और बीरबल के हाथों से कागज का पुलिंदा छीनकर उसमें आग लगा दी।

जब यह खबर बादशाह अकबर तक पहुँची तो खूब हँसे और बीरबल से बोले-“मैं जानता हूँ कि तुमने कोई शाही महाभारत नहीं लिखी होगी और तुमने पाँच हजार मुद्राएँ भी जनसेवा में खर्च कर दिया, किंतु अपनी बुद्धिमानी से इस बार भी तुम बाजी जीत गए, तुम्हारे इस हाजिर जवाबी से हम प्रसन्न हैं।”

इसपर बीरबल ने ने मुस्कराते हुए कहा “हुजूर! आप कहें तो मैं पुनः शाही महाभारत लिखने का प्रयास करू।”

इसपर बादशाह अकबर ने उत्तर दिया “नहीं, अब नहीं, जाओ दरबार का काम देखो, छह महीने से सब कुछ अस्त-व्यस्त पड़ा है तुम्हारे बिना।”

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अकबर बीरबल की कहानी

मुंह पीछे बुराई –

बीरबल से जलने वाले बहुत थे। एक बार किसी ईष्यालु ने चौराहे पर एक कागज चिपका दिया। उसमें शुरू से आखिर तक बीरबल को कोसा गया था। उस पर हर आने-जाने वाले की नजर पड़ती थी।

बीरबल को जब इस बात का पता चला तो वह कुछ आदमियों को लेकर वहाँ पहुँच गया। उसने देखा कि वह कागज ऊँचाई पर था, जिससे पढ़ने में दिक्कत होती थी। उसने कागज उतरवाकर थोड़ा नीचे चिपकवा दिया।

वहाँ पर काफी लोग एकत्र हो गए थे, बीरबल ने उन सबसे मुखातिब होते हुए कहा- “यह कागज हम लोगों के मध्यस्थ और भविष्य का इकरारनामा है, यह ऊंचाई पर था, इसलिए मैंने इसको नीचे चिपकवा दिया है ताकि सब लोग आसानी से पढ़ सकें। मैं अपने विपक्षियों को सूचना देता हूँ कि मेरे साथ अपनी मनमानी करें, उनके साथ मैं भी अपनी इच्छा से बदला लूंगा।”

रुई चोर –

बादशाह अकबर हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए दलालों के माध्यम से भारी मात्रा में रुई मंगवाते थे और बहुत… ही सस्ती दर पर कातने वाले कारीगरों को दे देते थे, जिससे उनका गुजारा चलता रहता था।

वे कारीगर सूत कातकर दरबार को वापस लौटा देते और दरबार से वह सूत पुनः व्यापारियों को बेचा जाता था, लेकिन जब हर माह के अंत में हिसाब लगाया जाता तो रुई की मात्रा में गड़बड़ी मिलती।

हर तरह से कोशिश करने के बाद भी रुई की चोरी पकड़ी नहीं गई तो बादशाह अकबर ने यह काम बीरबल को सौंप दिया।

बीरबल ने जाँच की तो उसने पाया कि जो दलाल रुई बेचते हैं, गड़बड़ी उन्हीं की तरफ से होती है लेकिन इन दलालों में से चोर कौन है…. … इसका पता नहीं चल पा रहा था।

बहुत कोशिशों के के बाद भी जब रुई चोर का पता नहीं चल पाया तो बीरबल ने रूई के सभी दलालों को दरबार में बुलाया।

पहले तो वह रुई के व्यवसाय से होने वाले नुकसान की बात करता रहा। फिर कुछ सोचकर बोला- “अगर हालात यही रहे तो हमें यह रुई का व्यापार बंद करना पड़ेगा।

मैं नहीं चाहता कि एक चोर की वजह से आप सभी दलालों का नुकसान हो, वैसे चोर बहुत चालाक है और आप ही में से कोई एक है।

मैं उसे जानता हूँ, वह रुई की मात्रा में कमी करके तो चोरी करता ही है और यहाँ आने के बाद कुछ रुई पगड़ी में भी छिपा लेता है, मैं उससे बाद में अकेले में बात करूंगा।”

बीरबल ने यह सब कहने के बाद सभी दलालों पर पूरी नजर रखी। वह उनकी एक-एक हरकत को देख रहा था।

उन दलालों में सचमुच रुई चोर भी था। उसे लगा कि उसकी पगड़ी में शायद रुई लगी हुई है। उसने नजरें बचाकर अपनी पगड़ी पर हाथ फेरा। बीरबल तो यह चाहता था, उसने तुरन्त उसको गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।

जब उससे सख्ती की गई तो उसने रुई की चोरी करना स्वीकार कर लिया। बीरबल ने उसे कारागार भेज दिया, बादशाह अकबर रूई चोर के पकड़े जाने से अत्यंत प्रसन्न हुए।

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बीरबल की योग्यता –

बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल से जलने वालों की कमी न थी, बादशाह अकबर का साला तो कई बार बीरबल से मात खाने के बाद भी बाज न आता था, बेगम का भाई होने के कारण अक्सर बेगम की ओर से भी बादशाह को मजबूरी में ये सारा दबाव सहना पड़ता था।

ऐसे ही एक बार फिर साले साहब स्वयं को बुद्धिमान बताते हुए दीवान पद की मांग करने लगे। बीरबल अभी दरबार में नहीं आया था। अतः बादशाह अकबर ने साले साहब से कहा कि – “मुझे आज सुबह महल के पीछे से कुत्ते के पिल्लों की आवाज सुनाई दे रही थीं, शायद किसी कुतिया ने बच्चे दिए हैं जाओ और देखकर आओ, फिर हमें खबर दो कि क्या ये सही है या नहीं।

बादशाह का आदेश पाकर साले साहब गए और कुछ देर बाद लौटकर बोले -“जहाँपनाह, आपने सही बताया कि, कुतिया ने बच्चों को जन्म दिया है।

“अच्छा! कितने बच्चे हैं? बादशाह ने पूछा।

“हुजूर वह तो मैंने गिने नहीं

“गिनकर आओ।”

अब फिर से साले साहब गए और लौटकर बोले-“हुजूर, पाँच बच्चे हैं। “कितने नर हैं…… कितने मादा ?” बादशाह ने फिर से प्रश्न किया।

साले साहब ने जवाब दिया – “वह तो मैंने नहीं देखा।”

अब एक बार फिर से बादशाह का आदेश पाकर साले साहब गए और लौटकर जवाब दिया -“हुजूर, तीन नर है और दो मादा।”

“नर पिल्ले किस रंग के हैं?”

“हुजूर, वह… अभी देखकर आता हूँ।”

“रहने दो…..बैठ जाओ।” बादशाह ने कहा।

अब कुछ देर बाद बीरबल दरबार में हाजिर हुए, तब बादशाह अकबर बोले-“बीरबल, आज सुबह महल के पीछे से कुत्ते के बच्चों की की आवाजें आ रही हैं, शायद किसी कुतिया ने बच्चे दिए हैं, जाओ देखकर आओ आखिर पूरा माजरा क्या है, ताकि हमें सच्चाई का पता चले…”

“जी हुजूर!” बीरबल चला गया और कुछ देर बाद लौटकर बोला- “हुजूर, आपने सही फरमाया….. हैं।” ..कुतिया ने ही बच्चे दिए

“कितने बच्चे हैं?” “हुजूर, पाँच बच्चे हैं।

“कितने नर हैं…… कितने मादा।” मादा।”

“हुजूर, तीन नर हैं…. दो नर किस रंग के हैं?”

“दो काले हैं, एक बादामी है।”

“ठीक है, बैठ जाओ।”

बादशाह अकबर ने अपने साले की ओर देखा, वह सिर झुकाए चुपचाप बैठा रहा। बादशाह ने उससे पूछा- – क्यों अब तुम क्या कहते हो ?”

उससे कोई जवाब देते न बना ।

अब तो आन पड़ी है

बादशाह अकबर को काफी मजाक करने की आदत सी थी, एक दिन उन्होंने नगर के सेठों से कहा- “आज से तुम लोगों को पहरेदारी करनी पड़ेगी।” सुनकर सेठ घबरा गए और बीरबल के पास पहुँचकर अपनी फरियाद रखी।

बीरबल ने उन्हें हिम्मत दी और कहा – “एक काम करो तुम सब अपनी पगड़ियों को पैर में और पायजामों को सिर पर लपेटकर रात्रि के समय में शहर में चिल्ला-चिल्लाकर कहते फिरो, अब तो आन पड़ी है, कोई तो हमें बचा ले”

और उधर बादशाह भी भेष बदलकर नगर में गश्त लगाने निकले, सेठों का यह निराला स्वांग देखकर बादशाह पहले तो हंसे, फिर बोले- “अरे यह सब क्या हो रहा है?”

तब सेठों के मुखिया ने कहा- “जहांपनाह, हम सभी सेठ जन्म से गुड़ और तेल बेचने का काम सीखकर आए हैं, भला पहरेदारी क्या कर पाएंगे? अगर इतना ही जानते होते तो लोग हमें बनिया कहकर क्यों पुकारते, हम सैनिक कहलाते?”

बादशाह अकबर बीरबल की चाल समझ गए और अपना आदेश वापस ले लिया।

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Akbar Birbal Ki Kahani

लेटने की आदत –

रोज बीरबल दोपहर को खाना खाने के बाद कुछ देर लेटकर आराम करता था, यह उसकी रोजाना की आदत में शुमार था और बादशाह अकबर भी इस बात को जानते थे, एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से खाने के बाद लेटने का कारण भी पूछा, तो बीरबल ने उन्हें बताया कि उसके बुजुर्गों ने बताया है।

“खाकर लेट जा और मार कर भाग जा, ऐसा करने वाला सदैव मुसीबतों से बचा रहता है।

एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल को दोपहर के भोजन के तुरन्त बाद दरबार में बुलवा लिया। वे देखना चाहते थे कि बीरबल ऐसी स्थिति में भी लेटेगा या उनकी आज्ञा का पालन करेगा।

सेवक ने बीरबल के पास जाकर बादशाह का हुक्म सुना दिया। बीरबल उस समय भोजन कर रहा था। उसने सेवक से कहा – “हुजूर से कहो कि मैं कुछ ही देर में उनकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा।”

सेवक चला गया और बादशाह को बीरबल का संदेश सुना दिया। कुछ देर तक जब बीरबल नहीं आया तो अकबर को लगा कि बीरबल लेटने चला गया होगा, अतः उन्होंने पुनः सेवक को बीरबल के पास भेजा।

सेवक जब बीरबल के पास पहुँचा तो उसने देखा कि वह एक बहुत ही चुस्त पाजामा लेटकर पहन रहा है। सेवक को देखकर बीरबल ने कहा- “तुम इन्तजार करो, मैं तुम्हारे साथ ही चलूंगा।”

कुछ देर में बीरबल ने पाजामा पहन लिया और सेवक के साथ दरबार की ओर चल दिया।

एक दिन बादशाह अकबर दरबार में गुस्से में बैठे थे, बीरबल को देखकर बोले- “मैंने तुम्हें खाने के बाद तुरन्त दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया था, किन्तु तुमने मेरे आदेश की अवहेलना की और सोने के लिए चले गए, ऐसा क्यों?”

“हुजूर मैंने आपके आदेश की अवहेलना नहीं की। मुझे तो यह चुस्त पाजामा पहनने में देर हो गई। इसे पहनने के लिए ही मुझे लेटना पड़ा, आप चाहें तो अपने सेवक से पूछ सकते हैं, जब यह मुझे बुलाने गया तो मैं लेटकर यह पाजामा ही पहन रहा था।” बीरबल ने कहा।

सेवक ने भी बीरबल की बात की पुष्टि की। बादशाह अकबर समझ गए कि बीरबल ने बड़ी चतुराई से उनके आदेश का भी पालन किया और खाने के बाद कुछ देर लेट भी लिया।

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पैसे की थैली किसकी –

रोज की तरह आज भी दरबार लगा हुआ था, बादशाह अकबर राज-काज देख रहे थे, तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं।

बादशाह ने दोनों को लाने का आदेश दिया, दोनों व्यक्ति दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए।

महाराज ने कहा – “खुलकर बिना डरे बताओ क्या समस्या है तुम्हारी?”

फरियादी – “महाराज, मेरा नाम काशी है और पेशे से मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूँ, और हुजूर, यह कसाई है। इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की थैली भी ले गया।

जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, जहांपनाह हमारे साथ न्याय करे, मेरी पैसों की थैली मुझे वापस दिला दें।”

“अवश्य, न्याय अवश्य होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है? – महाराज ने कसाई से पूछा…

कसाई बोला – “जहांपनाह, मेरा नाम रमजान है और मैं पेशे से एक कसाई हूँ, हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज के मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली। अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मैं गरीब हूँ जहांपनाह मुझे मेरे पैसे का थैला वापस दिल दीजिए।

उन दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हक में फैसला दें उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा।

बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया, ताकि सत्यता की जांच की जा सके।

सच्चाई का पता लगाने के लिए बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और फिर पानी को ध्यानपूर्वक देखा।

फिर बादशाह अकबर से कहा- “यह देखिए महाराज, इस पानी में सिक्के डालने से तेल का जरा सा भी अंश पानी के ऊपर नहीं दिखाई दे रहा है।

अगर यह सिक्के इस तेली के होते तो यकीनन इन सिक्कों पर तेल का अंश जरूर लगा होता और जहर सी बात है कि वह तेल थोड़ी मात्रा में पानी के ऊपर तैरता हुआ दिखाई दे रहा होता।

बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और बीरबल की बात से सहमत हो गए। बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलवाया और कहा- “मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है, कौन इसका असली हकदार है।

काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली तो रमजान कसाई की है।”

“हुजूर, यह थैली मेरी है।” काशी ने एक बार फिर कहा, तो जवाब में बीरबल ने सिक्के डाले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा- “यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ- न-कुछ तो तेल अवश्य लगा होता, लो तुम भी देखो…. इसमें तेल तो जरा सा भी दिखाई नहीं दे रहा है।”

बीरबल के इस जवाब पर काशी चुप हो गया, उसका झूठ पकड़ गया, बीरबल ने रमजान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया, उसकी गलती की सजा उसे मिल गई।

जितनी लम्बी चादर उतना पैर पसारो –

अकबर के दरबार के दरबारियों की एक शिकायत हमेशा रहती थी और वो ये कि बादशाह अकबर हमेशा बीरबल को बुद्धिमान कहते है, उनके अलावा किसी और को नहीं…

लोगों के अंदर इस भावना को देखते हुए एक दिन बादशाह अकबर ने अपने सभी दरबारियों को दरबार में बुलाया, दो हाथ चौड़ी और दो हाथ लम्बी चादर देते हुए कहा- “आप में से कोई भी इस चादर मुझे सर से लेकर पैर तक ढक दो तो मैं समझूँगा कि आप सब भी बुद्धिमान हो।

अब एक एक करके सभी दरबारियों ने कोशिश की किंतु उस चादर से बादशाह को पूरा नहीं ढंक पाए, सिर छिपाते तो पैर निकल आते, पैर छिपाते तो सिर चादर से बाहर आ जाता। आड़ा-तिरछा, लम्बा-चौड़ा हर तरह से सभी ने कोशिश की किंतु सफलता हाथ न लगी।

सबके कोशिश कर लेने के बाद अब बादशाह ने बीरबल को बुलवाया और वही चादर देते हुए उन्हें ढंकने ढंकने को कहा।

जब बादशाह लेटे तो बीरबल ने बादशाह के फैले हुए लम्बे पैरों को सिकोड़ लेने को कहा। बादशाह ने पैर सिकोड़े और बीरबल ने आसानी से सिर से पांव तक महाराज को चादर से ढंक दिया।

सभी दरबारी आश्चर्य से बीरबल की ओर देख रहे थे, तब बीरबल ने कहा- “जितनी लम्बी चादर उतने ही पैर पसारो।” इस बात का हमेशा ख्याल रखो।

बाकी दरबारी भी समझ गए कि क्यों महाराज बीरबल को ज्यादा प्यार देते है, उन्हें बुद्धिमान बताते है।

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जोरू का गुलाम –

एक दिन महाराज और बीरबल बाग में टहलते हुए बातें कर रहे थे, धीरे-धीरे बातचीत मियां-बीबी के रिश्ते पर होने लगी तो बीरबल ने कहा “अधिकतर मर्द जोरू के गुलाम होते हैं और अपनी बीवी से डरते हैं।” ये बीवी से कमजोर ही होते है।

इस बात पर बादशाह ने कहा – मैं तो नहीं मानता

महाराज की बात पर बीरबल ने कहा – “महाराज, यदि आप चाहें तो मैं इस बात को साबित कर सकता हूँ।”

अब महाराज के अंदर भी उत्सुकता जग उठी और बोले ठीक है, “सिद्ध करके दिखाओ…

अब बीरबल ने कहा – महाराज आप आज ही आदेश जारी करें कि किसी के भी अपनी बीवी से डरने की बात साबित हो जाती है तो उसे एक मुर्गा दरबार में बीरबल के पास जमा करना पड़ेगा।” बादशाह ने ये आदेश जारी कर दिया।

इस आदेश के बाद अगले कुछ ही दिनों में बीरबल के पास ढेर सारे मुर्गे जमा हो गए, अब बीरबल ने बादशाह से कहा-“हुजूर, अब तो इतने मुर्गे जमा हो गए हैं कि आप मुर्गों की दुकान खोल सकते हैं, अपना आदेश वापस ले लीजिए, नहीं तो रोज ऐसे ही मुर्गे आते रहेंगे।

अब बादशाह को न जाने क्या मजाक सूझा कि उन्होंने आदेश वापस लेने से मना कर दिया, इससे खीझकर बीरबल लौट गए।

अगली प्रातःकाल जब फिर से दरबार लगा तो बीरबल ने अकबर से कहा – महाराज हमारे सूत्रों से पता चल है कि हमारे पड़ोसी राजा पुत्री बेहद खूबसूरत है, आप कहें तो उनके यहाँ आपके विवाह का प्रस्ताव भेज दूँ…

डरते हुए अकबर ने कहा – ये क्या कह रहे है, राजमहल में पहले से ही दो रानियाँ हैं, अगर उन्होंने सुन लिया तो मेरी खैर नहीं, कुछ तो सोचो।

इसपर बीरबल ने जवाब दिया – “हुजूर, अब तो दो मुर्गे आप भी दे दें।

अब बीरबल की बात सुनकर बादशाह को समझ आ गया और उन्होंने अपना आदेश वापस ले लिया।

महाजन का चित्र –

राज्य के चर्चित चित्रकार से एक महाजन ने अपना चित्र बनवाया, काफी देर के बाद जब चित्र तैयार हुआ तो महाजन ने चित्रकार से कहा कि ठीक से नहीं बना है, दुबारा चित्र बनाकर लाओ।

अब चित्रकार दोबारा चित्र बनाकर लाया किंतु इस बार फिर महाजन ने पहले वाली हरकत की और चित्रकार को फिर से चित्र बनाने के लिए कहा।

अब जब कई बार महाजन चित्रकार को परेशान कर चुका तो चित्रकार से रहा न गया, उसकी समझ में आ गया कि महाजन चेहरा बदलने में माहिर है, अतः उसने अब तक बनाए गए चित्रों की मजदूरी मांगी।

इसपर महाजन ने बेईमानी का चेहरा बनाते हुए कहा कैसा मेहनताना….. ? जब चित्रकार से मेरा चित्र ठीक तरीके से बना ही नहीं तो मेहनताना कैसा? एकदम सही चित्र बनाओ तो मेहनताना भी मिल जाएगा, जबतक तुम ऐसा नहीं करते मैं तुम्हें पैसा नहीं दे सकता।”

अगले दिन चित्रकार बादशाह के दरबार में गया और बादशाह अकबर को सारा किस्सा सुना दिया, अपने लिए उचितनये करने की मांग की।

सारी चीजों को जाँचने के लिए बादशाह अकबर ने चित्रकार से महाजन के सभी चित्र मंगवाए और महाजन को भी दरबार में बुलाया गया।

बीरबल और बादशाह अकबर ने सभी चित्रों को गौर से देखा और फिर महाजन से पूछा- “इन चित्रों में क्या कमी है?” “इसपर महाजन ने कहा – हूजुर, इनमें से कोई भी चित्र हूबहू मेरे चेहरे से नहीं मिल रहा, चित्रकार ने सभी चित्रों में मुझे सही तरीके से नहीं बना पाया है।”

अब बादशाह अकबर सोच में पड़ गए, जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने बीरबल से न्याय करने को कहा, बीरबल दरबार में ही था, उसने सारी बातें देखीं, सुनी और समझी।

बीरबल समझ गए कि यह धूर्त महाजन चेहरा बदलने में माहिर है और चित्रकार को परेशान कर कर रहा है।

अब कुछ देर सोचने के बाद कहा-“देखो चित्रकार मैंने सभी चित्र देखें हैं, सचमुच इनमें कमिया हैं, अतः दो दिन बाद तुम महाजन का एक बढ़िया-सा चित्र बनाकर दरबार में आना और महाजन तुम भी उस दिन दरबार में उपस्थित होना, अगर चित्र पसंद आता है तो चित्रकार को उसकी सारी मजदूरी दे देना।

महाजन के जाने के बाद बीरबल ने चित्रकार से कहा-“दो दिन बाद तुम एक बड़ा-सा दर्पण लेकर दरबार में आ जाना।” ये मामला हल हो जाएगा।

अगली बार दरबार में चित्रकार दर्पण लेकर आया, महाजन के आने पर वह दर्पण उसके सामने रखकर चित्रकार बोला- “आपका चित्र तैयार है, मुझे विश्वास है ये जरूर पसंद आएगा।”

महाजन ने जैसे ही चित्र की तरफ देखा तो बोल आर यह तो दर्पण है।

इस बीरबल ने कहा “यही तो असली चित्र है और महाजन यह तुम्हारा ही रूप है न।

इसपर महाजन ने केवल हाँ में सिर हिलाया और समझ गया कि उसकी चालाकी पकड़ी जा चुकी है और उसने चित्रकार को उसकी मजदूरी दी और राजा ने उसे दो दिन के कारावास में डलवा दिया।

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साले साहब की जिद –

एक बार बादशाह अकबर के साले साहब ने स्वयं को दीवान बनाने की जिद पकड़ लिया, अब महाराज अकबर सीधे-सीधे इनकार तो नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने एक शर्त रखी कि मैं तुम्हें दीवान बना दूंगा लेकिन पहले ये काम करना होगा।

मैं तुम्हें तीन रुपये दे रहा हूँ और इससे तीन चीजें खरीदनी है और हर चीज एक रुपये की हो और पहली चीज यहाँ की हो, दूसरी वहाँ की और तीसरी न वहाँ की और न यहाँ की हो।

पैसे लेकर साले साहब बाजार गए वहाँ उन्होंने बहुत कोशिश की, लेकिन ये कोई भी चीज न खरीद सके और थक हार कर वापस दरबार लौट गए और आकर राजा से बोले – हर बार आप मुझे ऐसा काम देते है जिससे मैं हल ही नहीं कर पता हूँ, इससे मेरा दीवान बनने का सपना पूरा नहीं हो रहा आप जानबूझकर मुश्किल काम सौंपते है मुझे।

इसपर जहांपनाह ने कहा – देखिए साले साहब! कोई काम मुश्किल नहीं होता, बस काम को करने की लगन होनी चाहिए। यही काम मैं अब बीरबल को सौंपता हूँ, देखना वह जरूर इसे पूरा करेगा।” इसके बाद उन्होंने तीन रुपये बीरबल को देकर वही बातें दोहराकर कहीं जो काम साले साहब को दिया था।

बीरबल बाज़ार गए और कुछ समय बाद लौटे तो बादशाह पूछा- “कहिए बीरबल कुछ मिला क्या आपको?”

इसपर बीरबल ने कहा ‘जी हुजूर, पहले मैंने एक रुपया फकीर को दान दिया और पुण्य खरीद लिया, इससे वहाँ की चीज मिल गई। दूसरे रुपये को मैंने खाने-पीने में खर्च किया जो यहाँ की चीज थी इससे दूसरी शर्त पूरी होती है और तीसरा रुपया मैंने जुआ खेलने में गंवा दिया जो न यहाँ काम आया और न वहाँ।” बस हो गए आपकी शर्त के अनुसार तीनों चीज।

अब महाराज अकबर साले साहब की ओर देखकर कहा इसलिए बीरबल हमें दीवान के रूप में पसंद है, देख आपने इसे कहते है अक्लमंदी।

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हरे रंग का घोड़ा –

एक दिन महाराज अपने घोड़े पर सवार होकर बाग की सैर कर रहे थे, उनके साथ बीरबल भी थे बाग में हरे-भरे पेड़ थे और हरी घास की ही चादर-सी बिछी थी, इतनी हरियाली देखकर बादशाह का मन प्रफुल्लित हो उठा और उन्होंने मन की बात बीरबल से कही कि कितना बढ़िया होता कि हमारे पास हरे रंग का घोडा होता ऐसे हरे-भरे बाग में टहलने के लिए।

यह बोलकर फिर कुछ देर सोचकर बीरबल से फिर बोल – “कहीं से भी मेरे लिए हरे रंग के घोड़े का इंतजाम करो, मैं तुम्हें हफ्ते भर का समय देता हूँ, बीरबल यदि तुम ऐसा नहीं कर पाए तो तुम मेरे सामने अपना चेहरा दिखाने कभी मत आना।

ऐसा नहीं कि अकबर को नहीं पता था कि हरे रंग का घोडा कहाँ मिलता है यह तो असंभव है, लेकिन महाराज ने बीरबल का बुद्धि परीक्षण करने के लिए ऐसा कहा।

अगले सात दिन तक बीरबल शहर में इधर-उधर ऐसी मुद्रा बनाए भटकता रहा, मानो सच में हरे घोड़े को खोज रहा हो। आठवें दिन वह बादशाह अकबर के सामने पहुँचा और अदब से बोला- “हुजूर, आखिर मैंने काफी मेंहनत करने के बाद आपके लिए हरा घोड़ा खोज लिया है।”

इतना सुनते ही बादशाह हैरान रह गए क्योंकि जो काम संभव नहीं था बीरबल ने उसे संभव कर दिया था, वे उत्सुकतावश बोले मैं उस घोड़े को तुरंत अपने सामने देखना चाहता हूँ।

इसपर बीरबल ने अपनी चतुराई भरा जवाब दिया, महाराज अभी तुरंत दिखाना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि जिस व्यक्ति के पास ये घोडा है उसकी दो शर्तें है।

पहली शर्त तो ये है कि घोडा लेने महाराज को स्वयं हमारी दुकान पर आना होगा, पहली शर्त सुनते ही बादशाह तपाक से बोले आर इसमें क्या है हम चले जाएंगे वहाँ घोडा लेने अब दूसरी शर्त क्या है ये बताइए।

इसपर बीरबल ने कहा- “चूंकि हुजूर, घोड़े का रंग औरों से जरा अलग है तो उसे लाने का दिन भी एकदम अलग हो, इसलिए घोड़े के मालिक की यही दूसरी शर्त है कि सप्ताह के सात दिन छोड़कर जिस दिन चाहे महाराज घोड़े को ले जाएं।

दूसरी शर्त सुनकर बादशाह अकबर नि:शब्द हो गए उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा कि वे क्या कहें, कुछ क्षणों बाद वे मंद-मंद मुस्कुराने लगे कि बीरबल ने अपनी अक्लमंदी से फिर उन्हें जवाब दे दिया है।

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