Chhand Kise Kahate Hain | छंद किसे कहते है | Chhand Kise Kahate Hain Chhand Ke Prakar Likhiye
छंद, पद्य की रचना का एक मानक है और इसी के आधार पर पद्य की सृष्टि होती है, पद्यरचना समुचित ज्ञान “छंदशास्त्र” का अध्ययन किए बिना नहीं हो सकता।
हिंदी भाषा की दृष्टि से छंद का एक महत्वपूर्ण स्थान है, परीक्षाओं की दृष्टि से देखा जाए तो, हिंदी व्याकरण की परीक्षा में इस अध्याय से जुड़े कुछ सवाल जरूर पूछे जाते है।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम, Chhand Kise Kahate Hain, छंद की परिभाषा, इसके प्रकार तथा इससे जुड़े उदाहरण के बारे में बात करेंगे।
Chhand Kise Kahate Hain? –
अक्षरों की संख्या तथा क्रम, मात्राओं की गणना तथा यति-गति से संबंध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्यरचना “छंद” कहलाती है।
छंद के बारे में सबसे पहले चर्चा “ऋग्वेद” में मिलती है, छंद पद्य की रचना का मानक है और इसी के आधार पर पद्य का निर्माण होता है।
वैयाकरण विश्वनाथ के अनुसार ‘छन्छोबद्धं पदं पद्यम्’ अर्थात् विशिष्ट छन्द में बंधी हुई रचना को पद्य कहा जाता है।
बिना छंद या लय के कविता की रचना करना असम्भव है, आधुनिक हिंदी कविता में पहले से चले आ रहे छंद का बंधन मान्य नहीं है, इसमें ‘मुक्त छंद’ का प्रयोग होता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पद्य रचना का समुचित ज्ञान “छंदशस्त्र” का अध्ययन किए बिना नहीं हो सकता।
छंद, ह्रदय की सौन्दर्य भवन को जागृत करते है, छंद से बंधे हुए कथन में एक विचित्र प्रकार आनंद रहता है, जो कि पढ़ते समय अपने आप ही जागता है।
तुक छंद का एक भाग है, जो इसका प्राण है, यही हमारी आनंद-भावना को प्रेरित करती है।
गद्य में शुष्कता रहती है जबकि पद्य में भाव कि तरलता, यही कारण है कि पद्य हमें ज्यादा पसंद आता है ।
सौन्दर्य चेतना के अलावा छंद का प्रभाव स्थाई होता है, इसमें वो शक्ति होती है, जिसका सीधा प्रभाव ह्रदय पर पड़ता है और ये हमारे ह्रदय पर अमिट छाप छोड़ जाती है।
इन्हीं कारणों की वजह से हिंदी के कवियों ने छंडों को ह्रदयपूर्वक अपनाया, हिंदी भाषा में छंदशास्त्र का जितना विकास हुआ है, उतना किसी भी देशी-विदेशी भाषा में नहीं हुआ है।
छंद के अंग –
छंद योजन की प्रक्रिया को आसानी से समझने तथा इसकी विशेषताओं को जानने के लिए, इसके विभिन्न अंगों को जानना अति आवश्यक है, छंद के निम्नलिखित अंग होते है –
पाद या चरण –
“पाद” यानि पैर को “चरण” भी कहते है, छंदशास्त्र में में “पाद” का अर्थ, छंद का चतुर्थ भाग होता है।
सामान्यतः छंद के चार चरण होते है, प्रत्येक चरण में वर्णों या मात्राओं की संख्या क्रम के अनुसार होती है।
एक छंद में चार से अधिक चरण हो सकते है, लेकिन सामान्य तौर पर चार ही होते है।
स्थान के अनुसार चरण (पाद) दो प्रकार के होते है, ‘प्रथम’ और ‘तृतीय’ चरण को ‘विषम’ तथा ‘द्वितीय’ और ‘चतुर्थ’ चरण को ‘सम’ कहते है।
मात्रा और वर्ण –
छंद में दो प्रकार के स्वर है – ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर, दीर्घ स्वर वाले वर्ण के उच्चरण में ह्रस्व स्वर से दुगुना समय लगता है।
छंदशास्त्र में ह्रस्व और दीर्घ को मात्र कहते है, यहाँ स्वर के साथ व्यंजनों का भी समावेश होता है, लेकिन व्यंजनों की मात्र नहीं गिनी जाती है।
जैसे – ‘स्थ्य’ में स् – थ् – य् ये तीन व्यंजन शामिल है और ‘अ’ स्वर है, यहाँ पर ‘अ’ के कारण ‘स्थ्य’ की एक ही मात्रा गिनी जाएगी, इसी तरह ‘नयन’ में तीन मात्राएं गिनी जाएगी।
दीर्घ स्वर वाले वर्णों की दो मात्राएं होती है, जैसे – ‘काला’ में दो वर्ण है लेकिन मात्राएं चार है।
गुन अवगुन जानत सब कोई। इसमें 16 मात्राएं और 13 वर्ण है।
लघु और गुरु –
छंदशास्त्र में प्रयोग होने वाले ‘ह्रस्व’ को ‘लघु’ और ‘दीर्घ’ को ‘गुरु’ कहते है, ये दोनों वर्ण के प्रकार है, लघु का चिन्ह ‘। ‘ होता है तथा गुरु का चिन्ह ‘s’ होता है।
लघु के नियम –
1. अ, इ, उ – इन ह्रस्व स्वरों तथा इनसे युक्त एक व्यंजन या संयुक्त व्यंजन को ‘लघु’ माना जाता है, जैसे -कमल, इसमें तीनों वर्ण लघु है। इस शब्द का मात्राचिह हुआ 111
2. जिन स्वरों के ऊपर चंद्रबिंदु लगा होता है वे भी ह्रस्व स्वर (लघु) होते हैं। जैसे- ‘हँ’।
गुरु के नियम –
1. आ, ई, ऊ और ऋ इत्यादि दीर्घ स्वर और इनसे युक्त व्यंजन गुरु होते हैं। उदाहरण के तौर पर – राजा, रानी, ताला, चाबी इत्यादि। इन तीनों शब्दों का मात्राचिह्न हुआ SS
2. ए, ऐ, ओ, औ- ये सभी संयुक्त स्वर और इनसे मिले व्यंजन भी गुरु होते हैं, जैसे – कैसा, नौका, ओझल, आहट इत्यादि।
3. अनुस्वारयुक्त वर्ण गुरु होता है। जैसे – गंगा, मांग, संसार इत्यादि, लेकिन, चंद्रबिंदु वाले वर्ण गुरु नहीं होते।
4. विसर्गयुक्त वर्ण भी गुरु होता है। जैसे – प्रातः, स्वतः, दुःख, इत्यादि।
5. संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण गुरु होता है। जैसे – भक्त, सत्य, धर्म, दुष्ट इत्यादि, अर्थात – SII
संख्या, क्रम और गण –
मात्राओं और वर्णों की गिनती को ‘संख्या’ और लघु-गुरु के स्थान निर्धारण की प्रक्रिया को ‘क्रम’ कहते है।
वाक्य में मात्राओं और वर्णों की ‘संख्या’ तथा इनके ‘क्रम’ की सुविधा के लिए तीन वर्णों का एक-एक गण मान लिया गया है, इन गणों के आधार पर मात्राओं का क्रम वार्णिक वृत्तों या छंदों में होता है, अतः इन्हें ‘वार्णिक गण’ भी कहते हैं।
छंद के लिए इन गणों की संख्या आठ है और इन्हीं के स्थान परिवर्तन से छंदों की रचना होती है, नीचे इस तालिका में इन गणों के नाम, लक्षण, चिह्न और उदाहरण कुछ इस प्रकार हैं –
गण | वर्ण क्रम | चिन्ह | उदाहरण | प्रभाव |
यगण | आदि लघु, मध्य गुरु, अंत गुरु | ISS | जमाना | शुभ |
मगण | आदि, मध्य, अंत गुरु | SSS | आजादी | शुभ |
तगण | आदि गुरु,मध्य गुरु, अंत लघु | SSI | लाचार | अशुभ |
रगण | आदि गुरु, मध्य लघु, अंत गुरु | SIS | नीरजा | अशुभ |
जगण | आदि लघु, मध्य गुरु, अंत लघु | ISI | प्रकाश | अशुभ |
भगण | आदि गुरु, मध्य लघु, अंत लघु | SII | नीरस | शुभ |
नगण | आदि, मध्य, अंत लघु | III | कलम | शुभ |
सगण | आदि लघु, मध्य लघु, अंत गुरु | IIS | वसुधा | अशुभ |
काव्य या छंद की शुरुआत में “अशुभ गण” (अगण) नहीं पड़ना चाहिए, इसके पीछे कारण यह है कि उच्चारण या लय में असुविधा होने के कारण कुछ गणों को अशुभ कहा गया है।
सभी गणों को आसानी से याद रखने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है – यमाताराजभानस लगाः।
इस सूत्र के पहले आठ वर्णों में आठ गणों के नाम आ गए है तथा अंतिम के दो वर्ण ‘ल’ और ‘ग’ छंदशास्त्र में ‘दशाक्षर’ कहलाते है।
जिस गण का स्वरूप निकालना हो, उस गण के पहले अक्षर और उससे आगे के दो अक्षर को इस सूत्र से लेना रहता है।
जैसे – “तगण” का स्वरूप पता करना हो तो सूत्र मे ‘ता’ और आगे के दो अक्षर ‘रा ज’ = ‘ताराज’ (SSI) बनाते है।
अब इस ‘ताराज’ की मदद से लघु- गुरु को जाना जा सकता है कि ‘तगण’ में गुरु + गुरु + लघु (SSI) होते है।
यहाँ याद रखने योग्य बात यह है कि गण का विचार केवल वर्णवृत (वर्णिक छंद) में होता है, मात्रिक छंद इससे मुक्त है।
यति, गति और तुक –
छंदशास्त्र में ‘यति’ का अर्थ विश्राम या विराम, ‘गति’ का अर्थ लय या प्रवाह और ‘तुक’ का अर्थ अंत्य वर्णों की आवृत्ति है।
सामान्य तौर पर प्रत्येक छंद के चार चरण या पाद होते हैं और प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है, कभी-कभी एक चरण में अनेक यतियाँ भी होती है, छंद को संगीतमय बनाती है।
गति, चरणों में लय भरकर उसे लययुक्त बनाती है, वैसे तो गति का कोई खास नियम नहीं है। लेकिन, यदि छंद के चरणों की मात्राएँ ठीक है साथ ही शब्दों का क्रम भी ठीक है तो पढ़ते समय गति आप ही आप उत्पन्न होगी।
चरणों के अंत में के वर्णों की आवृत्ति को ‘तुक’ कहते है, साधारण तौर पर पाँच मात्राओं की तुक उत्तम मानी गई है।
संस्कृत के छंदों में तुक का महत्त्व नहीं था, लेकिन हिंदी में तुक ही छंद का प्राण है, इसी की वजह से चरणों को पढ़ने समय मधुर प्रवाह मिलता है, जो सुनने और पढ़ने में अच्छा लगता है।
छंद के भेद (प्रकार) –
वर्ण और मात्र के अनुसार छंद चार प्रकार के होते है, चलिए इन सभी के बारे में जानते है –
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Summary –
छंद किसे कहते है (Chhand Kise Kahate Hain) इसके बारे में यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से और यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिखना न भूलें, धन्यवाद 🙂