Aditya L1 Mission In Hindi【आदित्य L1 मिशन क्या है】उद्देश्य

Table of Contents

Whatsapp Channel
Telegram channel

Aditya L1 Mission In Hindi | आदित्य एल-1 मिशन | Aditya L1 Mission Kya Hai | Aditya L1 Kya Hai | Aditya L1 Launch Date | Aditya L1 Mission Launch Date

चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को स्पेस के क्षेत्र में उन देशों की लिस्ट में शामिल कर दिया जहां कुछ बहुत ही कम देश पहुँच सके है, आने वाले समय में इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए अपना मिशन शुरू करने वाला है और इस मिशन का नाम है “आदित्य-L1

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, इसरो के आने वाले सूर्य मिशन, आदित्य-L1 के बारे में… यह क्या है, इस मिशन के क्या उद्देश्य है, तथा इससे मानव जाति को होने वाले फायदे और इससे जुड़े तथ्यों के बारे में बात करेंगे, उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख पसंद आएगा।

Aditya L1 Mission In Hindi –

Aditya L1 Mission In Hindi
Aditya L1 Mission In Hindi

भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो आने वाले 2 सितंबर को सूर्य की तरफ अपना मिशन करने जा रही है, इस मिशन में इसरो द्वारा एक सेटेलाइट ‘आदित्य’ को सूर्य की तरफ लगभग 15 लाख किलोमीटर तक भेजा जाएगा।

Aditya L1, सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला स्वदेशी अंतरिक्ष मिशन होगा, इस अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रेंज बिंदु 1 (L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित है।

पृथ्वी से सूर्य के बीच की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है, लेकिन आदित्य L1 सेटेलाइट सूर्य की तरफ लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर एक काल्पनिक बिन्दु L1 तक पहुंचाया जाएगा।

यह काल्पनिक बिन्दु L1 लैग्रेजियन पॉइंट कहलाता है, वैज्ञानिकों के अनुसार इस पॉइंट पर सूर्य की तरफ से लगने वाला बल और धरती की तरफ से लगने वाला बल दोनों बराबर हो जाते है।

इस पॉइंट पर किसी ऑब्जेक्ट को छोड़ा जाए तो वह आसानी से अंतरिक्ष में सूर्य का चक्कर लगते हुए अध्ययन किया जा सकता है।

धरती और सूर्य के बीच में ऐसे और भी पॉइंट है, जिसे L2, L3 और L4 इत्यादि नामों से जाना जाता है।

आदित्य L1 मिशन का महत्व –

सूर्य हमारे सौरमंडल का सबसे प्रमुख ग्रह है, आकार में तो यह पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है, मतलब सूर्य के अंदर 13 लाख पृथ्वी आसानी से समा सकती है।

सूर्य हमारे सौरमंडल का ऊर्जा का एकमात्र स्त्रोत है, इसकी यह विशाल ऊर्जा कई रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।

सूर्य की ऊर्जा का प्रमुख कारण नाभिकीय संलयन है, ऊर्जा के निकलते समय सूर्य पर तूफान आते रहते है, जिसे सौर तूफान (Solar Flare) कहते है।

सूर्य पर हर 11 वर्षों में बड़े सौर तूफान आते है जिसकी वजह से धरती पर और धरती की कक्षा में मौजूद सेटेलाइट और हमारा नेविगेशन सिस्टम के खराब होने का डर बना रहता है।

इतिहास में ऐसी घटनाएं हुई है, जब इस सौर तूफान की वजह से मानव जाति को नुकसान उठाने पड़े है।

इस बार 2024 को सोलर तूफान का बाद साल माना जा रहा है, जिसमें ये अनुमान लगाया जा रहा है इसकी वजह से धरती पर और इसकी कक्षा में मौजूद सेटेलाइट सिस्टम को नुकसान पहुँच सकता है।

ये हम सभी जानते है कि सूर्य एक तारा है और सूर्य खुद की ऊर्जा से चमकता है, जबकि पृथ्वी एक ग्रह है जो सूर्य की ऊर्जा से चमकती है।

सूर्य के अंदर हीलियम और बहुत सारे रेडियोऐक्टिव तत्व है, इसकी बहुत सारी परतें है, अंदर की परत फ़ोटोस्फियर जो ज्यादा चमकीली है इसके बाद बाहर की तरफ क्रमशः क्रोमोस्फीयर और कोरोना है, जो कि कम चमकीले है।

ये कोरोना ही सूरज के चारों तरफ का स्थान है जहां से रोशनी की चमक बाहर निकलती है।

सूरज के सतह पर ज्वालामुखी की तरह हर सेकंड लाखों विस्फोट होते रहते है जिनसे लहरें बाहर निकलती है, इन लहरों को ही सौर तूफान कहा जाता है।

ये तूफान ब्रह्मांड में मौजूद तत्वों को आयनाइज करने का काम करती है, इस आयनीकरण के फलस्वरूप इलेक्ट्रोस्फ़ेयर, मैग्नेटोस्फ़ेयर उत्पन्न होता है।

तत्वों या कणों के आयनिकृत होने के बाद ये कण पृथ्वी की तरफ आने लगते है, तूफान के रूप में आने वाले ये कण धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रही सेटेलाइट का रास्ता बदल देते है।

आज के समय में सेटेलाइट हमारे संचार, नेविगेशन और इंटरनेट के लिए बेहद आवश्यक हो गया है, सौर तूफान का खतरा इन चीजों पर हमेशा मंडराता रहता है।

सूर्य की तरफ भेजे जा रहे इस मिशन से हमें पहले ही इन सौर तूफ़ानों के बारे में पता लगाना संभव होगा जिससे सुरक्षा के आवश्यक कदम उठाए जा सके।

सौर तूफान का सीधा जुड़ाव सौरमंडल से है और उसमें यह सीधे सूर्य से संबंधित है, सोलर तूफान असल में सूर्य से उठने वाली विकराल ज्वालाओं का समूह है, जो वहाँ गैसों के प्रभाव से होने वाले विस्फोट से पैदा होती है।

सूर्य की सतह पर होने वाले ये विस्फोट कई परमाणु बमों जितने शक्तिशाली होते है, इस सौर तूफान की रफ्तार 30 लाख किलोमीटर प्रति घण्टे होती है।

2012 में आए शक्तिशाली सोलर तूफान के कारण वह का रेडियो सिस्टम ठप हो गया था, 1989 में सोलर तूफान की वजह से कनाडा के क्यूबेक शहर में 12 घंटे बिजली तक बिजली चली गई थी।

1859 में आए सबसे चर्चित शक्तिशाली जिओ मैग्नेटिक तूफान, केरींगटन ने उस समय बहुत बड़ी तबाही मचाई थी, यह अब तक का रिकार्ड सबसे बाद सोलर तूफान था, इसकी वजह से उत्तरी और पश्चिमी अमेरिका में इतनी तेज रोशनी हुई थी कि लोग रात के समय इस रोशनी में अखबार पढ़ने में सक्षम थे।

यह आर्टिकल भी पढ़ें –

इसरो क्या है?Click Here
PSLV क्या है?Click Here
GSLV क्या है?Click Here

Aditya L1 Mission In Hindi | आदित्य एल-1 मिशन | Aditya L1 Mission Kya Hai | Aditya L1 Kya Hai | Aditya L1 Launch Date | Aditya L1 Mission Launch Date

Adity L1 की संरचना –

इस मिशन में आदित्य L1 के साथ सात तरह के पेलोड को भेज जा रहा है, जो अलग-अलग तरह के डाटा इकट्ठा करेंगे।

आदित्य L1 सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली स्पेस बेस्ड इंडियन लेबोरेट्री होगी, इसे सूर्य के चारों ओर बनने वाले कोरोना के अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है।

आदित्य यान, L1 यानि सूर्य-पृथ्वी के लैग्रेजियन पॉइंट पर रहकर सूर्य पर उठने वाले तूफ़ानों को समझेगा।

यह पॉइंट पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है, सेटेलाइट को यहाँ तक पहुँचने में करीब 120 दिन यानि 4 महीने लगेंगे।

यह लैग्रेजियन पॉइंट के चारों ओर की कक्षा, फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर के अलावा सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना की अलग-अलग वेब बैंडस से 7 पेलोड के जरिए डाटा इकठ्ठा करेगा।

L1 मिशन के सैटलाइट में 7 पेलोड जा रहे है, जो कुछ इस प्रकार से है –

1. सूर्य और ग्रहों के बीच के मैग्नेटिक फील्ड की गहन जांच के लिए ‘मैगनेटोमीटर’ नाम के पेलोड को काम में लिया जाएगा।

2. सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की निगरानी करने के लिए सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप, लगाया गया है।

3. सौर वायु की जांच के लिए आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट डिवाइस।

4. सूर्य की ऊपरी परत (कोरोना) की जांच के लिए विजिबल इमिशन लाइन ‘कोरोनाग्राफी’ पेलोड लगाया गया है।

5. सूर्य पर प्लाज्मा प्रवाह की जांच के लिए ‘प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य’ नाम के पेलोड से जांच की जाएगी।

6. सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा तरंगों की जांच के लिए सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर भी लगाया गया है।

7. इसके अलावा आदित्य L1 हार्ड एनर्जी एक्स-रे स्पेक्टोमीटर का इस्तेमाल करेगा।

आदित्य L1 सेटेलाइट के कार्य –

क्रोमोस्फीयर और कोरोना गतिकी का अध्ययन करना और उसके डाटा को इकट्ठा करना।

क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल तापन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत, और फ्लेयर्स का अध्ययन करना और आँकड़े इकट्ठा करना।

सूर्य से कण की गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले यथावस्थित कण और प्लाज्मा वातावरण का प्रेक्षण करना और उसकी जानकारी जुटाना।

सौर कोरोना की भौतिकी और इसका ताप तंत्र, कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान: तापमान, वेग और घनत्व को मापना।

सी.एम.ई. का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति, उन प्रक्रियाओं के क्रम की पहचान करें जो कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) में होती हैं जिनका परिणाम सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाता है।

कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र माप, हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता का अध्ययन करना।

लैग्रेजियन पॉइंट क्या होता है? –

सूरज और धरती के बीच मैग्नेटिक फोर्स में 5 ऐसे बिन्दु हैं, जहां से सूर्य पर निगरानी की जा सकती है, इन बिंदुओं को L1, L2, L3, L4 तथा L5 और विस्तृत रूप में लैग्रेजियन पॉइंट कहते है।

इन लैग्रेजियन पॉइंट पर दो बड़ी बॉडीज के बीच गुरुत्वाकर्षण उतना ही होता है जितना उन दोनों बॉडीज के बीच मौजूद छोटे ऑब्जेक्टस को मूव करने के लिए सेंट्रिपिटल फोर्स की जरूरत होती है।

L-1 पॉइंट पर स्थापित की जाने वाली सैटेलाइट के पास सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि यहां ग्रहण का असर नहीं होता, सैटेलाइट से यहाँ बिना किसी रुकावट के लगातार सूरज का अध्ययन किया जा सकेगा।

आदित्य L-1 लैगरेंजियन प्वाइंट – 1 (L1) के हालो ऑर्बिट में पहुंचेगा क्योंकि, L1 प्वाइंट सूर्य के ठीक सामने है, यहां से सूर्यग्रहण के दौरान भी डेटा कलेक्शन में कोई दिक्कत नहीं देखने को मिलेगी।

आदित्य L1 खाली कक्षा का में स्थापित किया जाएगा, जिसका मतलब यह है कि यह किसी ग्रह के सामने चक्कर न लगाकर खुद एक सर्किल में चक्कर लगाएगा।

लैगरेंज पॉइंट्स अंतरिक्ष में वो जगह होती है जहां किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाए तो वो वहीं रहता है, मतलब यह दो विपरीत दिशा में लगने वाले बलों के बीच साम्य बिन्दु होता है, जहँ पर सभी विपरीत बलों का प्रभाव शून्य होता है।

पूरी तरह स्वदेशी –

इसरो के एक अधिकारी के अनुसार आदित्य L1 देश की संस्थाओं की भागीदारी से बनने वाला पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बना हुआ यह सिस्टम है।

बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ ने इसके पेलोड का निर्माण किया है।

जबकि सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजर पेलोड की टेक्नॉलजी को, इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे के द्वारा बनाया गया है।

सेटेलाइट में लगे यूवी पेलोड का इस्तेमाल कोरोना और सोलर क्रोमोस्फीयर पर, जबकि एक्स-रे पेलोड का इस्तेमाल सूर्य की लपटों को देखने के लिए किया जाएगा।

इसके अलावा इसमें लगाए गए पार्टिकल डिटेक्टर और मैग्नेटोमीटर पेलोड, चार्ज्ड पार्टिकल के हेलो ऑर्बिट तक पहुंचने वाली मैग्नेटिक फील्ड के बारे में जानकारी देंगे।

सोलर मिशन का इतिहास –

नासा ने अब तक अकेले कुल 14 मिशन सूर्य पर भेजे हैं, इनमें से 12 मिशन सूरज के ऑर्बिटर हैं, यानी सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाते हैं, एक मिशन फ्लाईबाई है, दूसरा सैंपल रिटर्न था, नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने सूरज के आसपास से 26 बार उड़ान भरी है।

इसके अलावा नासा के साथ पार्टनरशिप में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने चार मिशन किए हैं, ये थे उलिसस और सोहो, उलिसस के तीन मिशन भेजे गए हैं, ESA ने अकेले सिर्फ एक मिशन किया है, वो एक सोलर ऑर्बिटर मिशन था।

ESA का सोलर ऑर्बिटर मिशन यह दो साल पहले लॉन्च किया गया था, यह स्पेसक्राफ्ट अब भी रास्ते में है।

वहीं अगर बात जर्मनी की करें तो जर्मनी ने दो मिशन किए हैं, ये दोनों ही मिशन नासा के साथ मिलकर किए गए थे जिसमें पहला 1974 में और दूसरा 1976 में, इन दोनों मिशन का नाम हेलियोस-ए और बी रखा गया था।

नासा के द्वारा साल 1969 में भेजा गया पायोनियर-ई स्पेसक्राफ्ट एक ऑर्बिटर था, जो फेल हो गया था, यह अपनी तय कक्षा में पहुंच ही नहीं पाया और फेल हो गया।

इसके अलावा नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी का उलिसस-3 मिशन जो साल 2008 में भेजा गया था, यह मिशन आंशिक रूप से सफल रहा था, उलिसस ने शुरुआत में कुछ डेटा भेजा, बाद में उसकी बैट्री खत्म हो गई जिसके कारण इसने काम करना बंद कर दिया।

नासा ने साल 2001 में जेनेसिस मिशन लॉन्च किया था, इसका मकसद था सूरज चक्कर लगाते हुए के चारों तरफ सौर हवाओं का सैंपल लेना, इस मिशन में उसने सफलता हासिल की सौर हवाओं का सैंपल लिया और धरती की तरफ लौटा लेकिन यहां पर उसकी क्रैश लैंडिंग हुई, हालांकि नासा के वैज्ञानिकों ने अधिकतर सैंपल इकट्ठा करने में सफल रहे थे।

दुनिया भर में अब तक 22 सोलर मिशन हो चुके हैं, इसमें अमेरिका, जर्मनी, यूरोपीय यूनियन और जापान जैसे देशों के नाम शामिल हैं।

खगोल वैज्ञानिक डॉ. कुंवर अलकेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि भारत का सोलर मिशन इन सभी से यूनिक है। बाकी के देशों ने रेडियो वेव्स और X-Ray किरणों की जांच की क्षमता वाला सैटलाइट लॉन्च किया है।

जबकि आदित्य L1 खासतौर पर अल्ट्रा वायलेट किरणों, X-Ray उत्सर्जन और प्लाज्मा तीनों की स्टडी करेगा। इनका इफेक्ट धरती पर पड़ता है।

इनमें काफी ज्यादा रेडिएशन निकलता है। सूरज से निकलने वाले UV किरणों पर अभी बहुत ज्यादा स्टडी नहीं हुई है।

इसके साथ ही सोलर विंड, प्लाज्मा प्रवाह, गैस क्लाउड मोशन, विस्फोट आदि से उठी ऊंची-ऊंची लपटों पर रिसर्च करेगा, जिसके बारे में मिलने वाली जानकारी विज्ञान जगत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

Aditya L1 Mission In Hindi | आदित्य एल-1 मिशन | Aditya L1 Mission Kya Hai | Aditya L1 Kya Hai | Aditya L1 Launch Date | Aditya L1 Mission Launch Date

Aditya L1 Mission In Hindi | आदित्य एल-1 मिशन | Aditya L1 Mission Kya Hai | Aditya L1 Kya Hai | Aditya L1 Launch Date | Aditya L1 Mission Launch Date

Summary –

आने वाले समय में भारत अपेस के क्षेत्र में अपना अलग स्थान बनाने वाला है, अंतरिक्ष की ये उपलब्धियां हमें उन देशों की श्रेणी में खड़ा कर देंगी जो सालों पहले से इस क्षेत्र में अपना अनुभव रखते है।

तो दोस्तों आदित्य L1 के बारे में यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो उसे भी लिखना न भूलें धन्यवाद 🙂

हमें इंस्टाग्राम पर फॉलो करें –

Leave a Comment